अश्क जो आँखों से ढलकते है
कहीं ख़ुशी तो कहीं गम का इजहार करते है
गम तो हमदम है अपना
हम तो ख़ुशी का इंतजार करते है
बात जो रुक रुक कर होंठो पे आती है
वो बोल निकल लबों से गूंजे हवा में
हम बेक़रार रहते है
मैंने पूछा बाशिंदा- ए - शहर- ए- दर्द से
कि क्या है ख़ुशी
वो बोला जब दर्द हद से गुजर जाये
और क्या
शुक्रवार, 5 मार्च 2010
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