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शुक्रवार, 5 मार्च 2010

अश्क

अश्क जो आँखों से ढलकते है
कहीं ख़ुशी तो कहीं गम का इजहार करते है
गम तो हमदम है अपना
हम तो ख़ुशी का इंतजार करते है
बात जो रुक रुक कर होंठो पे आती है
वो बोल निकल लबों से गूंजे हवा में
हम बेक़रार रहते है


मैंने पूछा बाशिंदा- ए - शहर- ए- दर्द से

कि क्या है ख़ुशी
वो बोला जब दर्द हद से गुजर जाये
और क्या